वॉयस ऑफ़ इंडिया के नाम पर अब तक जितनी ख़राब बातें बाहर आई हैं ये उनमें सबसे बड़ी है। वॉयस ऑफ़ इंडिया के मालिकों ने जो कुकृत्य अब तक किए हैं ये उनमें सबसे बड़ा है.... वॉयस ऑफ़ इंडिया के मालिकों ने वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का अपमान किया है....
वॉयस ऑफ़ इंडिया का सूत्र वाक्य है.... पैसे कमाओ, पैसे बचाओ - पत्रकारिता जाए तेल लेने। पत्रकारिता ही क्यों, प्रोफ़ेशनलिज़्म, नैतिकता, श्रम कानून सब तेल लेने जाएं। वीओआई के मालिकों ने साफ़ शब्दों में सभी अधिकारियों (चैनल हेड्स, ब्यूरो चीफ़) को साफ़ शब्दों में कह दिया था कि पत्रकारिता नहीं, बिज़नेस चाहिए... ख़बर नहीं, पैसे चाहिए। सबसे पहले आशीष मिश्रा ने इसकी मुख़ालिफ़त करते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। एक दिन बाद बात मुकेश जी ने भी इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन उन्होंने नोटिस भी दिया। तो वो अब भी नोटिस पीरियड में ही हैं। एक प्रोफ़ेशनल की तरह वो ऑफ़िस आते रहे, चुनाव के दौरान पावर प्ले नाम का प्रोग्राम भी कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने पेड न्यूज़ (ख़बर के रूप में दिखाया जाने वाला विज्ञापन)में किसी भी तरह शरीक होने से इनकार कर दिया है।
ज़ाहिर है वीओआई के मालिक मुकेश जी से ख़ुश नहीं हैं। तो उन्होंने ये किया कि अपने एक पालतू को मुकेश जी पर शू कर दिया.... ये पालतू है प्रकाश पांडे.... इसके नाम से ज़्यादातर लोग वाकिफ़ होंगे... ये नाम पत्रकारिता पर एक धब्बे का है.... प्रकाश वही युवक है जिसने रातोंरात सफ़लता पाने के लिए उमा खुराना का फ़र्ज़ी स्टिंग ऑपरेशन किया था... करियर के लिए शॉर्टकट अपनाने के नाम पर इसने न सिर्फ़ उमा खुराना की ज़िंदगी तबाह की बल्कि दरियागंज के स्कूल में पढ़ने वाली सैकड़ों लड़कियों की ज़िंदगी को भी सवालों के घेरे में डाल दिया था... पता नहीं उनमें से कितनी बच्चियां और उनके मां-बाप उस हादसे से उबर पाए होंगे। अलबत्ता प्रकाश पांडे की कुछ भी कर सकने की काबिलियत वीओआई ने पहचान ली और उसे गेस्ट कोओर्डिनेशन में रख लिया... अपनी चारित्रिक विशेषताओं के कारण ये जल्द ही मालिकों का ख़ास बन गया....
अब मुकेश जी से परेशान वीओआई के मालिकों ने उसे ही मुकेश जी पर शू कर दिया.... पावर प्ले में एक गेस्ट को लेकर मुकेश जी ने प्रकाश को कुछ कहा तो उन्हीं पर चढ़ बैठा... गाली-गलौच करने लगा और उसने भरे न्यूज़ रूम में ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि कभी ज़ोर से न बोलने वाले मुकेश जी भी भड़क गए.... प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि वो तो मुकेश जी पर हाथव उठाने पर भी उतारू दिख रहा था (या दिखा रहा था)। इस दौरान एक, सिर्फ़ एक लड़के ने मुकेश जी के पक्ष में बोला तो वहीं खड़े मधुर मित्तल ने उसे ही डपट दिया। इसके बाद सब तमाशबीन बने रहे...
वीओआई के मालिक बिल्डर हैं.... शायद उनके काम करने के ढंग में शामिल है कि वो कुछ गुंडे पालते हैं... ज़मीन पर कब्ज़ा, मज़दूरों को धमकाने वगैरा के लिए... इनमें से कुछ से साबका तो वीओआई में काम करने वाले हर कर्मचारी का हुआ होगा क्योंकि ये एचआर और एकाउंट्स के अधिकारियों में भी हैं.... वो पत्रकारों से ऐसे बात करते हैं जैसे कि वो मज़दूर हों ये मुंशी... ऐतराज़ की बात तो ये भी है लेकिन शायद बेज़ुबान पत्रकार (जी हां इनकी आवाज़ सिर्फ़ दूसरों के लिए ही निकलती है)शायद सब सहते रहने को मजबूर हैं....
दरअसल जब भी कोई संकट आता है तो आदमी का मूल चरित्र सामने आता है.... अकाल, महामारी, युद्ध के वक्त कुछ लोग हमेशा कुछ लोगों की मौज आ जाती है, वो पावरफ़ुल हो जाते हैं.... वॉयस ऑफ़ इंडिया में भी ऐसा हो रहा है.... लेकिन मुझे लगता है कि इस वक्त वॉयस ऑफ़ इंडिया में जो भी अधिकारी के रूप में काम कर रहा है वो कम-ज़्यादा पाप का भागीदार है। ख़ासतौर पर बड़े अधिकारी..... कर्मचारी तो बेचारे मजबूर हैं.... सड़क पर आने से बेगार ही भली।
वॉयस ऑफ़ इंडिया में काम करना मेरे लिए आज तक का सबसे ख़राब अनुभव रहा.... लेकिन मुझे पता नहीं कि मैं ख़ुशनसीब हूं कि जब मुकेश जी का अपमान हुआ तब मैं वो देखने के लिए मौजूद नहीं था.... या मैं बदनसीब हूं कि वहां उतना सब हो गया और मैं विरोध करने के लिए मौजूद नहीं था....
बहरहाल मैं शर्मिंदा हूं और गुस्सा भी हूं.... बस अब मैं ये जानना चाहता हूं कि हम लोग क्या कर सकते हैं.... हम सभी...
Saturday, December 6, 2008
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