Wednesday, August 30, 2023

सैणी साब का कहना था कि ग़ालिब की कुछ अपनी पसंदीदा ग़ज़लें डालो। सहारा के शुरूआती निठल्लेपन के दिनों में मैं ये कुछ पीस लिखा करता था.... तभी लिखा था कि ग़ालिब की शायरी में माशूक की जगह बॉस को रख दो तो भी ये उतनी ही मौजूं है.... आज भी ये बात सही लगती है। ये ग़ालिब के कुछ अश्आर हैं.... मुझे पसंद रहे हैं- हमेशा से...


हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो ये अंदाज़े गुफ़्तगू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो राख, जुस्तजू क्या है
बना है शाह का मुनसिब फिरे है इतराता
वरना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

================================

है बस की हर इक उनके इशारे में निशां और
करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता हैं गुमां और
या रब ! वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको ज़ुबां और
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां और

================================

कहते तो हो यूं कहते-यूं कहते जो यार आता
सब कहने की बात है कुछ भी न कहा जाता
बात भी आपके सामने ज़ुबां से न निकली
लीजिए आए थे हम क्या क्या सोच के दिल में

Wednesday, January 22, 2014

सोमनाथ भारती उर्फ़ ठाकुर श्रीराम

दिल्ली में 15 जनवरी की रात केजरीवाल के कानून मंत्री ने जो गैरकानूनी काम किया उसके क्या मायने हैं?
पहला तो यह कि उनमें और मुलायम, लालू, मोदी के मंत्रियों की मानसिकता में कोई फ़र्क नहीं। कैमरे में वह भी ठीक बात कर रहे पुलिस अधिकारी को वैसे ही धमकाते नज़र आ रहे हैं जैसे कि इस देश का कोई और मंत्री धमकाता रहा है। दूसरा केजरीवाल, योगेंद्र यादव, मनीष सिसौदिया के नैतिकता के बड़े-बड़े दावों के बावजूद सत्ता मिलने पर आप के मंत्री उतने ही मदांध हो गए हैं जितना कि कोई और होता।
तीसरा कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को अपनी प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखने का दावा करने वाली पार्टी बेहद डरावनी हद तक महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। और सबसे ख़तरनाक अर्थ यह है कि 15 जनवरी को की गई हरकत किसी भी तर्क से पूरी तरह तालिबानी है।
15 जनवरी की रात से 21 जनवरी का शाम तक देश की राजधानी दिल्ली में जो हुआ वह हर लिहाज से देश को कम से कम सौ साल पीछे ले गया। सोमनाथ भारती ने जब खिड़की एक्सटेंशन में विदेशी महिलाओं पर, जो इत्तेफ़ाकन अश्वेत नहीं थीं, पर बिना किसी सबूत के देह व्यापार का आरोप लगाया तो उन्होंने क्या किया। उन्होंने सामाजिक और कानूनी नियमों को तो तोड़ा ही, उन्होंने महिला सम्मान के मूलभूत कायदे की भी धज्जियां उड़ा दीं।
इसके बाद निहायत तालिबानी अंदाज़ में आप के "अति भद्र" कार्यकर्ता उन महिलाओं को जबरन अस्पताल ले गए मेडिकल टेस्ट जैसी अपमानजनक स्थिति से गुज़रने पर मजबूर किया। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के यह भी एक तरह का बलात्कार ही था।
अगर आपको अब भी समझ न आ रहा हो कि दरअसल यह स्थिति कितनी ख़तरनाक है तो अफ़गानिस्तान के तालिबानी शासन को याद करें, जहां बिना किसी सबूत के सिर्फ़ एक या ज़्यादा लोगों के कहने पर कोड़ों से पीटने या हाथ-पैर काटने की सज़ा दी जाती रही है। या याद करें कि अपने ही देश के किसी गांव में कुछ प्रभावशाली लोगों के कहने पर किसी भी कमज़ोर महिला को डायन कहकर नंगा घुमाया जाता है, पीटा जाता है, जला दिया जाता है।
यकीनन इन चीज़ों को भी लोगों का समर्थन मिलता है और उसी के बल पर यह पाशविक हरकतें की जाती हैं। अगर अब भी किसी को कल्पना करने में दिक्कत हो रही हो तो वह फ़िल्म बैंडिट क्वीन के उस दृश्य को याद करे जब ठाकुर श्रीराम फूलन देवी को नंगा कर कुएं से पानी लाने को कहता है।
यह अजीब नहीं है कि सोमनाथ भारती की शक्ल मुझे उसी ठाकुर श्रीराम से मिलती लग रही है।
यूं भी जिसे आम आदमी पार्टी जनता की आवाज़ कह रही है दरअसल वह भीड़ का दबाव है जिसे लोकतंत्र में वोट की राजनीति भी कहा जाता है। इस आवाज़ या दबाव या राजनीति में आम आदमी पार्टी महिला के सम्मान की मूलभूत बातें भी भूल गई। भूल गई या उसने वोटों के लिए औरत के सम्मान की सबसे पहली बात की परवाह नहीं की।
16 तारीख की सुबह से जो हुआ वह और ज़्यादा ख़तरनाक है। यह वोटों के लिए, बहुसंख्यक के गुस्से की तुष्टि के लिए होने दिए गए गुजरात दंगों या दिल्ली के सिख नरसंहार से भी ख़तरनाक है।
यह एक बेहद सोची समझी, शातिर रणनीति थी-जिसके तहत एक ऐसे वर्ग को चुना गया जिसके समर्थन में कोई खड़ा हो। गरीब अफ़्रीकी देशों के अश्वेत- जिन्हें हब्शी से भी ज़्यादा ख़राब नामों से पुकारा जाता है, जिनके ख़िलाफ़ रंगभेद रगों में बहता है- से आसान शिकार कौन हो सकता था। इनके अपमान की बिसात पर आम आदमी पार्टी ने अपनी गोटियां सजाईं और बाकी विश्लेषक कुछ भी कहें 21 जनवरी की शाम केजरीवाल ने पहली बाजी जीत ली है।
पुलिस व्यवस्था के प्रति सारे असंतोष, गुस्से, उसके सुधरने के प्रति निराशा के बावजूद मैं कहता हूं कि यह ठीक नहीं हुआ। यह हरियाणा सरकार द्वारा खेमका के प्रति किए जा रहे व्यवहार से भी ख़राब है क्योंकि कम से कम खेमका को किसी मंत्री ने सरेआम चुनौती तो नहीं दी, अपमानित तो नहीं किया।
मैं मानता हूं कि दिल्ली ही नहीं पूरे देश की पुलिस भ्रष्ट है, बदतमीज है, क्रूर है। लेकिन मैं किसी भी मंत्री, चाहे वह जनता की उम्मीदों की लहर पर सवार केजरीवाल ही क्यों न हों, के पुलिस कमिश्नर को खुलेआम- देख लूंगा- की धमकी का समर्थन नहीं कर सकता।
एक बात और है कि सोमनाथ भारती के बहाने केजरीवाल के नेतृत्व और चरित्र की भी पड़ताल की जा सकती है। भारती केजरीवाल सरकार का चेहरा बदतमीज चेहरा हैं- मालिक की सीटी पर हमला करने वाले किसी खूंखार कुत्ते की तरह। उसकी बदतमीजी के पीछे बाकी सभी तमीजदार बने रह सकते हैं। जैसे कि सोनिया और राहुल कांग्रेसियों की बदतमीजियों पर ख़ामोश रहकर खुद को अलग कर सकते हैं। उसी तरह केजरीवाल जजों की बैठक बुलाने, वकालत के दौरान गलत साक्ष्य पेश करने, जेटली के मुंह पर थूकने जैसे बयानों को दरकिनार कर कांग्रेस और बीजेपी को गाली देते रह सकते हैं।
साफ़ है कि बीजेपी और कांग्रेस से यह देश उकता गया है। केजरीवाल तब तो कम से कम सही होते हैं जब वह कहते हैं कि यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
यह भी सही है कि महिलाओं की, कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा और इज्ज़त की इन दोनों दलों से उम्मीद करना ग़लत साबित हो चुका है लेकिन केजरीवाल जो कर रहे हैं क्या वह लोगों को समझ नहीं आएगा? क्या लोगों को यह समझ आते-आते देर हो जाएगी कि शायद इस मुखौटे के पीछे भी वही चेहरा है? क्या जब तक नई बोतल में पुरानी शराब को पहचानेंगे तब तक उनके हाथ से उनके भाग्यविधाता वोट निकल चुके होंगे ?
शायद हां- क्योंकि खिड़की एक्सटेंशन की अश्वेत महिलाओं की तरह केजरीवाल अपने शिकार बहुत सावधानी से चुन रहे हैं।

Monday, January 6, 2014

लव मैरिज- अरेंज्ड मैरिज

प्रेम विवाह और अरेंज्ड मैरिज में क्या फ़र्क है. पता नहीं.... या शायद कोई नहीं.
आप पूछ सकते हैं कि नए साल पर अचानक यह विवाह का विषय कहां से उठ गया.
दरअसल मेरे दो मित्र तलाक़ लेने के कगार पर हैं.
ज़ाहिर है आपका कोई नज़दीकी तलाक़ ले रहा होगा तो शादी आपके विचार के केंद्र में आ ही जाएगी. जैसे किसी नज़दीकी के मरने पर जीवन की निस्सारता आ जाती है.
शादी-प्यार-सेक्स का पश्चिमी ढंग मुझे पसंद रहा है.
अमूमन वहां लोगों में पहचान होती है. फिर सेक्स होता है. फिर एक न्यूनतम सहमति और लगाव के आधार पर लिविंग टुगैदर होता है और अगर लगाव प्यार में बदल गया तो हो सकता है कि शादी हो जाए या फिर बच्चे हो जाएं.
अब रिश्ता टूटने से पैदा होने वाले सारे दुष्प्रभाव, दुख, तकलीफ़ वहां भी मौजूद हैं. लेकिन शादी का अर्थ सामान्यतः सबसे बड़ा वादा या फ़ैसला होता है.
मुझे यह पसंद रहा है और सभी किंतु-परंतु के बीच अब भी पसंद है.
लेकिन अपने यहां यह चकरी उल्टी घूमती है. या फिर नहीं घूमती बस पड़ी रहती है. शायद इसलिए कि यह चकरी अक्सर ही टूटी हुई होती है- इसलिए आगे बढ़ती है तो घिसटती हुई- शोर करती हुई, रिश्ते को छीलती हुई.
सामान्यतः अपने यहां पहले शादी होती है. (अब शादी से पहले लड़का-लड़की में थोड़ी बहुत बातचीत भी होती है.) फिर सेक्स होता है, फिर संवाद होता है (कभी-कभी) , फिर बच्चे होते हैं. फिर किच-किच होती है.
प्यार होता है या नहीं इसके बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है (हालांकि पूछे जाने पर इनकार शायद ही कोई करे).
हालांकि प्यार की परिभाषाएं भी नाना प्रकार की हैं.
एक तो यह कहती है कि प्यार दरअसल एक आदत होता है किसी के साथ रहने की. ऐसे में प्यार मां-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चों के साथ रहने की आदत है. जितना जिसके साथ ज़्यादा रहे उतना प्यार हो गया. इसी तर्ज पर प्यार कुत्ते-बिल्ली, घर-बार, गांव-शहर से भी हो जाता है. किसी के ख़्याल से भी प्यार हो सकता है अगर वह आपके साथ बहुत ज़्यादा रहे- जैसे मीरा को हो गया था.
इस आधार पर कोई भी दावा कर सकता है कि उसे अपनी पत्नी या पति से प्यार है.
तो शादी और प्यार चाहे साथ-साथ न हों लेकिन इनके रिश्ते से आप इनकार नहीं सक सकते.
फिर प्रेम विवाह अरेंज्ड मैरिज से अलग कैसे है?
मेरे हिसाब से प्रेम विवाह में मियां-बीवी बराबरी पर खड़े होते हैं. इसमें स्वामी और दासी का भाव नहीं होता. इसमें अधिकार बराबर के होने चाहिएं और आपसी समझ बेहतर होनी चाहिए.
अरेंज्ड मैरिज समाज और परंपरा के हिसाब से चलती है.
तो मेरे जो दो मित्र तलाक़ लेने के कगार पर हैं- उन्हें और उनके बाद मैंने आस-पास देखा तो मुझे ये (अरेंज्ड, लव मैरिज) अलग नहीं नज़र आए.
वैसे उनमें से एक की अरेंज्ड मैरिज है और दूसरे की लव.
लेकिन दोनों की ही ज़िंदगी नरक है. ग़लती उनकी है या उनकी बीवियों की या बस तालमेल ठीक नहीं बैठ रहा- हम इस पर नहीं जा रहे. लेकिन यह साफ़ है कि दोनों ही शादियों की स्थिति एक सी है, नियति एक सी है.
मेरा एक दोस्त है जिसकी अरेंज्ड मैरिज हुई है. कई जगह रिश्ते भिड़ाने के बाद उसकी शादी हो पाई- यकीनन लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा.
लेकिन उन दोनों की आपसी समझ इतनी बढ़िया है कि मैं उसे प्रेम पर आधारित विवाह कहना पसंद करता हूं.
मेरे एक अन्य मित्र ने प्रेम विवाह किया था. करीब 12-14 साल पहले वह विद्रोह था (बहुत सी जगह अब भी है.)
लेकिन उसकी बीवी की ज़िंदगी वैसी ही है जितनी की अरेंज्ड मैरिज में किसी की हो सकती है.
अब वह कभी-भी दारू पीकर घर आता है, न बीवी की सुनता है और न ही बच्चों की. उसकी बीवी उसके गुस्से के डर से वैसे ही सहमी रहती है जैसे मेरी मां रहती थी, है. कुछ कहती है तो डरते-डरते कि कहीं पतिदेव गुस्सा न हो जाएं. मुझे यकीन है कि उन दोनों में अब भी प्यार होगा- कहीं छुपा हुआ.
(या शायद ऐसा है कि अपने पारंपरिक ढंग के ढांचे में प्यार बस दर्शाया नहीं जाता, रहता है अंदर कहीं और दिखता है परवाह से या आदर से.)
कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी बीवी भी मुझसे पारंपरिक भूमिका की उम्मीद करती है. उसके लिए भी फ़ैसले लेने की उम्मीद, बाहर ले जाने, घुमाने-फिराने की उम्मीद (हालांकि मैं उम्मीद करता हूं कि वही हमें ले जाए, घुमाए-फिराए) या फिर दीवार में कुछ टांगने के लिए कील ठोकने की उम्मीद...
मेरा एक मित्र शादी के कुछ साल बाद भी अपनी बीवी का परिचय देते वक्त इस बात पर ज़ोर देता है कि वह दोस्त हैं, उसके बाद धीरे से बोलता है कि और हमने शादी कर ली है. शायद यह शादी के पारंपरिक ढांचे में कैद न होने की कोशिश है. (हालांकि अब बच्चा होने के बाद वह परिचय कैसे देता होगा- यह मुझे पता नहीं चला.)
एक अन्य मित्र शादी न करने के लिए प्रतिबद्ध था और लिविंग टुगैदर को आदर्शतम स्थिति मानता था. उसने लव किया लेकिन लिविंग टुगैदर शादी के बाद ही हो पाया. अब उसकी गृहस्थी वैसी ही है जैसी दिल्ली में रहने वाले किसी वर्किंग कपल की होती है- क्या अरेंज्ड क्या लव.
बहरहाल एक से ज़्यादा उदाहरणों के साथ मुझे दिखता है कि दस साल (या पांच साल) पुराने पति-पत्नी को देखकर यह अंदाज़ लगाना आसान नहीं रहता कि उनकी शादी कैसे हुई थी- लव मैरिज या अरेंज्ड.
और फिर जिस देश में लिविंग रिलेशन में रहने वाले कपल को अदालत पति-पत्नी मान लेता हो (मतलब अरेंज्ड मैरिज के समकक्ष) उस देश में महिला-पुरुष के बराबरी पर खड़े होकर संबंध बनाने की बात बेमानी नहीं लगती.