Monday, January 6, 2014

लव मैरिज- अरेंज्ड मैरिज

प्रेम विवाह और अरेंज्ड मैरिज में क्या फ़र्क है. पता नहीं.... या शायद कोई नहीं.
आप पूछ सकते हैं कि नए साल पर अचानक यह विवाह का विषय कहां से उठ गया.
दरअसल मेरे दो मित्र तलाक़ लेने के कगार पर हैं.
ज़ाहिर है आपका कोई नज़दीकी तलाक़ ले रहा होगा तो शादी आपके विचार के केंद्र में आ ही जाएगी. जैसे किसी नज़दीकी के मरने पर जीवन की निस्सारता आ जाती है.
शादी-प्यार-सेक्स का पश्चिमी ढंग मुझे पसंद रहा है.
अमूमन वहां लोगों में पहचान होती है. फिर सेक्स होता है. फिर एक न्यूनतम सहमति और लगाव के आधार पर लिविंग टुगैदर होता है और अगर लगाव प्यार में बदल गया तो हो सकता है कि शादी हो जाए या फिर बच्चे हो जाएं.
अब रिश्ता टूटने से पैदा होने वाले सारे दुष्प्रभाव, दुख, तकलीफ़ वहां भी मौजूद हैं. लेकिन शादी का अर्थ सामान्यतः सबसे बड़ा वादा या फ़ैसला होता है.
मुझे यह पसंद रहा है और सभी किंतु-परंतु के बीच अब भी पसंद है.
लेकिन अपने यहां यह चकरी उल्टी घूमती है. या फिर नहीं घूमती बस पड़ी रहती है. शायद इसलिए कि यह चकरी अक्सर ही टूटी हुई होती है- इसलिए आगे बढ़ती है तो घिसटती हुई- शोर करती हुई, रिश्ते को छीलती हुई.
सामान्यतः अपने यहां पहले शादी होती है. (अब शादी से पहले लड़का-लड़की में थोड़ी बहुत बातचीत भी होती है.) फिर सेक्स होता है, फिर संवाद होता है (कभी-कभी) , फिर बच्चे होते हैं. फिर किच-किच होती है.
प्यार होता है या नहीं इसके बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है (हालांकि पूछे जाने पर इनकार शायद ही कोई करे).
हालांकि प्यार की परिभाषाएं भी नाना प्रकार की हैं.
एक तो यह कहती है कि प्यार दरअसल एक आदत होता है किसी के साथ रहने की. ऐसे में प्यार मां-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चों के साथ रहने की आदत है. जितना जिसके साथ ज़्यादा रहे उतना प्यार हो गया. इसी तर्ज पर प्यार कुत्ते-बिल्ली, घर-बार, गांव-शहर से भी हो जाता है. किसी के ख़्याल से भी प्यार हो सकता है अगर वह आपके साथ बहुत ज़्यादा रहे- जैसे मीरा को हो गया था.
इस आधार पर कोई भी दावा कर सकता है कि उसे अपनी पत्नी या पति से प्यार है.
तो शादी और प्यार चाहे साथ-साथ न हों लेकिन इनके रिश्ते से आप इनकार नहीं सक सकते.
फिर प्रेम विवाह अरेंज्ड मैरिज से अलग कैसे है?
मेरे हिसाब से प्रेम विवाह में मियां-बीवी बराबरी पर खड़े होते हैं. इसमें स्वामी और दासी का भाव नहीं होता. इसमें अधिकार बराबर के होने चाहिएं और आपसी समझ बेहतर होनी चाहिए.
अरेंज्ड मैरिज समाज और परंपरा के हिसाब से चलती है.
तो मेरे जो दो मित्र तलाक़ लेने के कगार पर हैं- उन्हें और उनके बाद मैंने आस-पास देखा तो मुझे ये (अरेंज्ड, लव मैरिज) अलग नहीं नज़र आए.
वैसे उनमें से एक की अरेंज्ड मैरिज है और दूसरे की लव.
लेकिन दोनों की ही ज़िंदगी नरक है. ग़लती उनकी है या उनकी बीवियों की या बस तालमेल ठीक नहीं बैठ रहा- हम इस पर नहीं जा रहे. लेकिन यह साफ़ है कि दोनों ही शादियों की स्थिति एक सी है, नियति एक सी है.
मेरा एक दोस्त है जिसकी अरेंज्ड मैरिज हुई है. कई जगह रिश्ते भिड़ाने के बाद उसकी शादी हो पाई- यकीनन लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा.
लेकिन उन दोनों की आपसी समझ इतनी बढ़िया है कि मैं उसे प्रेम पर आधारित विवाह कहना पसंद करता हूं.
मेरे एक अन्य मित्र ने प्रेम विवाह किया था. करीब 12-14 साल पहले वह विद्रोह था (बहुत सी जगह अब भी है.)
लेकिन उसकी बीवी की ज़िंदगी वैसी ही है जितनी की अरेंज्ड मैरिज में किसी की हो सकती है.
अब वह कभी-भी दारू पीकर घर आता है, न बीवी की सुनता है और न ही बच्चों की. उसकी बीवी उसके गुस्से के डर से वैसे ही सहमी रहती है जैसे मेरी मां रहती थी, है. कुछ कहती है तो डरते-डरते कि कहीं पतिदेव गुस्सा न हो जाएं. मुझे यकीन है कि उन दोनों में अब भी प्यार होगा- कहीं छुपा हुआ.
(या शायद ऐसा है कि अपने पारंपरिक ढंग के ढांचे में प्यार बस दर्शाया नहीं जाता, रहता है अंदर कहीं और दिखता है परवाह से या आदर से.)
कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी बीवी भी मुझसे पारंपरिक भूमिका की उम्मीद करती है. उसके लिए भी फ़ैसले लेने की उम्मीद, बाहर ले जाने, घुमाने-फिराने की उम्मीद (हालांकि मैं उम्मीद करता हूं कि वही हमें ले जाए, घुमाए-फिराए) या फिर दीवार में कुछ टांगने के लिए कील ठोकने की उम्मीद...
मेरा एक मित्र शादी के कुछ साल बाद भी अपनी बीवी का परिचय देते वक्त इस बात पर ज़ोर देता है कि वह दोस्त हैं, उसके बाद धीरे से बोलता है कि और हमने शादी कर ली है. शायद यह शादी के पारंपरिक ढांचे में कैद न होने की कोशिश है. (हालांकि अब बच्चा होने के बाद वह परिचय कैसे देता होगा- यह मुझे पता नहीं चला.)
एक अन्य मित्र शादी न करने के लिए प्रतिबद्ध था और लिविंग टुगैदर को आदर्शतम स्थिति मानता था. उसने लव किया लेकिन लिविंग टुगैदर शादी के बाद ही हो पाया. अब उसकी गृहस्थी वैसी ही है जैसी दिल्ली में रहने वाले किसी वर्किंग कपल की होती है- क्या अरेंज्ड क्या लव.
बहरहाल एक से ज़्यादा उदाहरणों के साथ मुझे दिखता है कि दस साल (या पांच साल) पुराने पति-पत्नी को देखकर यह अंदाज़ लगाना आसान नहीं रहता कि उनकी शादी कैसे हुई थी- लव मैरिज या अरेंज्ड.
और फिर जिस देश में लिविंग रिलेशन में रहने वाले कपल को अदालत पति-पत्नी मान लेता हो (मतलब अरेंज्ड मैरिज के समकक्ष) उस देश में महिला-पुरुष के बराबरी पर खड़े होकर संबंध बनाने की बात बेमानी नहीं लगती.

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