Sunday, January 17, 2010

बेटी तू किस पर हंस रही है

पिछले कुछ वक्त से (करीब डेढ़ महीने से) मैं अपनी बेटी को ग़ौर से देख रहा हूं..... (वैसे सभी अपने बच्चों को गौर से देखते होंगे) मेरी तीन बड़ी बहनों के छे बच्चे हैं (जैसे की सरकारी नीति है- बच्चे दो ही अच्छे).... यानि कि मैंने करीब-करीब घर में छे बच्चों को बड़ा होते देखा है..... दो-एक दोस्तों को छोड़कर सभी मुझसे बहुत पहले बाप बन चुके थे..... उनके बच्चों के साथ भी खेलता-खिलाता रहा हूं.... लेकिन कभी इतना छोटे बच्चे को नहीं खिलाया.... मुझे लगता है कि हममें से ज़्यादातर लोगों ने अपने बच्चों के अलावा इतने छोटे बच्चे को कम ही खिलाया होगा..... तो इस के साथ ही मुझे ये भी अहसास हुआ कि इतने छोटे बच्चे मां-बाप के ही होते हैं (दरअसल मां के) जब वो सिर्फ़ खाना, निकालना और सोना करते हों तो कोई उनके साथ क्या खेलेगा.... दादा-दादी, नाना-नानी जो भी उन्हें संभाल सके उसके भी होते हैं (नहीं लिखूंगो तो पापा बुरा मान सकते हैं)
शायद इसीलिए कहते हैं कि मां-बाप बने बिना, इसकी ख़ुशी और दिक्कतें समझ नहीं आतीं।
बहरहाल पिछले कुछ दिन से मैं ये भी समझने की कोशिश कर रहा हूं कि बच्चे हंसते-रोते क्यों हैं..... पिछले कुछ दिनों से तो जिनी मेरी कई तरह की आवाज़ों और शक्लों पर थोड़ा रिस्पांस भी करने लगी है लेकिन पहले भी वो हंसती थी-रोती थी-डरती थी..... नींद में भी और आंखें खोल कर भी.... उसका हमसे या उसके आस-पास की परिस्थितियों से सीधा कोई लेना-देना नहीं होता था.....
मैंने मम्मी-पापा से पूछा- तो उन्होंने कहा कि बेमाता हंसाती-रुलाती है।
मेरी दीदी का कहना था कि बच्चे को दूध के सपने आते हैं.... मिल रहा है तो ख़ुश, नहीं तो परेशान। हो सकता है- लेकिन जो कुछ दिन का बच्चा अपनी मां को ही नहीं पहचान पाता, वो दूध मिलने या छिनने के साफ़ चित्र कैसे देख-समझ पाता होगा।
बहरहाल और भी कुछ मत होंगे लेकिन पहले मैं अपना मत रख दूं..... मुझे लगता है कि बच्चों का हंसना, रोना, डरना, शांत होना पेट पर निर्भर करता है। पूरी तरह पेट में चल रहे कैमिकल रिएक्शन पर.... वैसे तो बड़ों का मूड भी पेट पर बहुत ज़्यादा निर्भर करता है लेकिन जब तक बच्चा दूसरी चीज़ें (पलटना, बैठना, घुटनों के बल चलना) नहीं सीख लेता तब तक सब कुछ पेट पर ही निर्भर करता होगा- सब कुछ

5 comments:

पलाश said...

कल्पना कीजिए कि आप अपने आस-पास की तमाम चीजें देख रहे हैं, उन्हें महसूस कर रहे हैं, लेकिन आपको ये नहीं पता ऐसा क्यों है...या फिर ऐसा क्यों होता है...ऊपर से दिक्कत ये कि आप जो महसूस कर रहे हैं उसे व्यक्त भी न कर पाएं...दरअसल जिनी की यही स्थिति है...ऐसे में अगर आप 'सोतडू-अवस्था' में रहेंगे तो सपने देखेंगे ही देखेंगे...वैज्ञानिक मानते हैं कि मुस्कुराने या रोने का भाव आपके अवचेतन मस्तिष्क में सपने पैदा करने के लिए काफी होता है और जन्म के तुरंत बाद इंसान के अंदर ये दोनों भाव तो आ ही जाते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपकी बच्ची आपको पहचानती है या नहीं। बेशक वो आपको अपने पिता के तौर पर न आइडेंटिफाई करती हो, वो सपने में आपकी तोंद को याद करके मुस्कुरा सकती है। उसके दिमाग में बहुत तेजी से बहुत सारे चित्र घुमड़ते हैं। हम और आप उसकी कल्पना भर कर सकते हैं। गुगल में रेम (Rapid Eye Movement) सर्च कीजिए। इस अवस्था में रहते हुए बच्चे सपने देखते हैं। आप जैसे-जैसे बड़े होते हैं ‘रेम’ में जाने की स्थिति कम होती जाती है। यानी जितना छोटा बच्चा, उतना ज्यादा सपने।

वर्षा said...

wah! janab gulmohar-'palash'-amaltash ji ne kya khoob jankari di.bloggers ki bhasha me....aabhar

दीपिका said...

सर ये तो शुरुआत है... अभी न जाने कितने सवाल उठेंगे जिनका जवाब आप ढ़ूढते रह जाएंगे... खैर पिता बनने का अनुभव करना और ब्लॉग में लिखना अच्छा है... एक बार फिर आपको पिता बनने की शुभकामनाएं...

सोतड़ू said...

अबे पांड़े जी....
जो थ्योरी आप बता रहे हैं वो मैने पहले भी पढ़ी थी और अब फिर पड़ी है.... रेम स्लीप में शिशुओं के सपने देखने के बारे में अनुमान ही हैं... वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए अनुमान- वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत तथ्य नहीं....
लेकिन क्योंकि तुम अभिमन्यु के गर्भ में ही सीखने की कथा पर भक्तिभाव से लीन होने वाले जीव हो, इसलिए माफ़ किया......
अलबत्ता तोंद को याद करने वाली बात मज़ेदार है.... हम ख़ुश हुए (कि तुमने कुछ सीखा)

अलहदी said...

bache ko bacha samjhana koi achi bat nahi. mahabhart ki katha ke mutabik abhimanu ne chakrvyuh ka bare me bahut kuch ma ke garbh me hi jan aur seekh lia tha. is lie bat sirf pet ki nahi hai. bache bhi hamari-tumhari tarah hi jante-samjhte hain.tum bitia ke sath khel rahe ho, bas khelte raho. yah apne ap me bahut sukhad hai