Thursday, October 14, 2010

तहखाना (दो पीस)

वॉल्व
टांय और ठांय के बीच
फंसी हुई पत्रकारिता
बंदूक से निकले
तो दांतों में अटके
तहखाने में दो दरवाज़े हैं अब
दोनों अपने किस्म के
डेंज़र वॉल्व के साथ

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पत्रकारिता और हिसाब
इसका मतलब वह नहीं
जो आप समझ रहे हैं
इसका मरने वालों,
हताहतों
पेट्रोल पंप पाने वालों
या इसी किस्म के
किसी भी आंकड़े से
कोई वास्ता नहीं

यह हिसाब प्रमोद कौंसवाल का है
ख़बर की बाइट गिनने
हेडिंग के शब्द गिनने का हिसाब
तहखाने के नए बाशिंदे की
अपनी पत्रकारिता है

(अमर उजाला (99-03) के दिनों में लिखी गई)

2 comments:

kewal tiwari केवल तिवारी said...

पुरानी चीजों को याद करने के दो कारण होते हैं। एक जब आप वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट होते हैं, घुट रहे होते हैं। दूसरा या फिर आपका अतीत बहुत अच्छा रहा। या फिर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अतीत की बात तो छोड़िए उसके बारे में सोचना भी पसंद नहीं करते। तुम्हारी अतीत की चीजों को पढ़-पढ़कर मैं उद्वेलित सा हो रहा हूं। तुम लोगों की क्रांतिकारिता मुझे याद है। बोल सकने का साहस, विरोध दर्ज कराने का साहस। यह साहस या दुस्साहस धीरे-धीरे व्यवस्था में ढलते रहने के कारण या कुछ मजबूरियों के कारण कुंद होता जाता है। कई लोगों ने बेवकूफाने साहस दिखाए भी। हमारा एक मित्र है जो खुद को साहसी दिखाने के लिए दूसरे किस्म से बातें करता है। यानी घटित कुछ हुआ और बताया कुछ। चोट लगने पर अंदरखाने एक कुलबुलाहट होती है। कई बार कई परेशानियों या मजबूरियों के कारण आप उसे बयां नहीं कर पाते या उस पर रिएक्ट नहीं कर पाते हैं। बहुत दबाते रहने पर बेवकूफाना कदम भी उठा डालते हैं। यह सब चल रहा है, पता नहीं यह सब ऐसे ही चलेगा या इसका और बुरा हश्र होगा। खासतौर में पत्रकारिता के मामले पर। तुम्हारी पुरानी बहुत सी चीजें मैंने पढ़ी है। वह भी जो अजय शर्मा की रचना में था। चलो ब्लॉग व्यवस्था अच्छी तो चल ही पड़ी है। जारी रखो दोस्त, इसी बहाने सही।

सुधीर राघव said...

नहीं केटी भाई। पुरानी चीजों को याद करने का मतलब होता है कि अब आप बूढ़े हो रहे हैं। बुढ़ापा अतीत को इस दंभ से याद करता है कि हम सर्वश्रेष्ठ थे। सही में इसी बहाने सोतड़ू भाई से यह एक श्रेष्ठ रचना पढ़ने को मिली। बूढ़ों के अतीतजीवी हो जाना एक कुदरती गुण हैं, इसीसे नई पीढ़ियां काफी कुछ सीख लेती हैं और बूढ़ों को पता भी नहीं चलता।