Wednesday, August 27, 2008

वहां और यहां

वहां मोह है
यहां मोहभंग है।
वहां स्थायित्व है, ठहराव है
यहां विकल्प हैं, बेचैनी है।
वहां विकल्पहीनता है, कुंठा है
यहां रह जाने की पीड़ा है, कुंठा है।
वहां दायरा सीमित है, घनिष्ठ है
यहां दायरा है भी तो इतना बड़ा
कि पता नहीं
आप कहां हैं।

1 comment:

सुधीर राघव said...

तुम्हारी रचनाएं तुम्हारी नजर का खुलासा करती हैं। नजर ठीक है या नहीं, इसके मायने सिर्फ मतलब परस्त लोगों के लिए होते होंगे। नजर को जो नजर आया, उसने कह दिया, यह बड़ी बात है। तुम्हारी स्पष्टवादिता का मैं कायल रहा हूं, भले ही इसमें सब सही न हो तो भी यह काबिले तारीफ है। नजर का धोखा सबको हो सकता है। तभी तो तुलसीदास कह गए हैं-जाकी रही भावना जैसी........। मगर मूरत जैसी दिखी वैसी कह देना भी कम बड़ी बात नहीं है।