बॉसत्व एक भाव है.... स्थिति नहीं, पद नहीं.... भाव। कुछ लोग इसी भाव के साथ पैदा होते हैं (प्रोफेशन में)..... कुछ लोग उम्र गुज़ारने के बाद भी- पद पाने के बाद भी इस भाव को प्राप्त नहीं हो पाते.... कुछ जो ज़्यादा स्मार्ट होते हैं, मौका मिलते ही भाव को प्राप्त हो जाते हैं.... लेकिन ऐसे विरले ही होंगे जो पद न रहने पर इस भाव से मुक्ति पा जाएं.....
पहले भी सोचता रहा हूं- पिछले कुछ वक्त से ज़्यादा साफ़ दिख रहा है कि - अपन बॉस मटीरियल नहीं हैं। बॉसत्व प्राप्त लोगों से अपनी कभी अच्छी पटी भी नहीं.... कुछ मित्र भी बॉसत्व को प्राप्त हो गए हैं लेकिन वो तभी तक मित्र हैं जब तक उनके साथ काम न करना पड़े (एक के साथ करना पड़ा तो अब वो मित्र नहीं है)।
वैसे बॉसत्व की एक स्थिति को मैं भी प्राप्त हो गया हूं (करीब साल भर से) लेकिन भाव को प्राप्त नहीं हो पाया। अब भी मैं एक टीम लीडर ही हूं। वही टीम लीडर जो अमर उजाला में था (चाहे टीम दो-तीन आदमियों की क्यों न हो)। निश्चित काम, काम की निश्चित शर्तें और उसे डिलीवर करने का निश्चित समय। इन चीज़ों के साथ अपन ठीक रहे..... थोड़ी-बहुत जॉब सेटिस्फेक्शन भी मिलती रही। लेकिन बॉस के मन को पढ़ लेने की कला में अपन हमेशा ही पिछड़े रहे.... इसलिए करियर में भी पिछड़े ही रहे।
ये बात अब पुरानी हो गई है कि जिन्हें हम चूतिया कहते थे (काम के लिहाज से) वो आगे बढ़ते रहे..... अब वो इतने आगे बढ़ चुके हैं कि उन्हें चूतिया कहना दरअसल खुद बनना है। पहले तो समझ नहीं आता था अब साफ़ दिखता है.... काम करने वाला हमेशा काम ही करता रहेगा और तरक्की करने वाला तरक्की का रास्ता ढूंढ ही लेगा।
अभी कुछ वक्त पहले एक ने पूछा-
कहां हो
यहीं
मतलब काम कहां कर रहे हो
काम या नौकरी
मतलब
मतलब काम क्या और नौकरी कहां
अच्छा नौकरी कहां कर रहे हो
साधना न्यूज़ नोएडा
(मुझे पता था वो कहां है) तुम क्या कर रहे हो
वही जो हमेशा करते थे
मतलब- बकलोली
वो बुरा मान गया
लेकिन वो बॉस हो ही नहीं सकता जिसे बकलोली न आती हो..... बॉस से दबना और जूनियर्स को दबाना... ख़बर या अफ़वाह सही आदमी तक पहुंचाना.... बॉस के मूड के हिसाब से काम करना और सही वक्त पर सही आदमी चुनकर उसके लटक जाना..... इसके अलावा तरक्की का क्या कोई और नुस्खा है ?
अगर जानते हो तो मुझे भी बताना
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6 comments:
nishit roop se bhaw hai bositva. kai baar aapki boss na ho paane ki khoobi ko chove samajh jaate hain aapko boss nahi banaya jaata aur kai baar banae ke baad yeh hota hai ki aap vaisa nahi kar rahe. yahan mein kaam nahi bol raha hoon
बास गिरी तो हम ने भी की है, लेकिन दिल से सब के संग मिल कर सब जेसे बन कर, सब को दिल मै बसाया सब के दिल मै बसे, बहुत सुंदर लिखा, बक्लोल लोगो के पीठ पीछे केसी बाते होती है??लेख बहुत सुंदर लिखा धन्यवाद
दो बातें… मेरे ब्लॉग पर कहानी पर तेरी और मेरी चर्चा के बारे में काफ़ी समय से कहना चाहता था कि तू महान है। मतलब सचमुच नहीं मगर इसलिये कि अपने को तू साहित्य से खेलने वाला आदमी न भी माने तो भी उसपर तेरी पकड़ ज़बरदस्त होने के सारे कारण तेरे पास हैं। अपनी कहानी के बारे में तेरी जगलिंग वाली बात तेरी टिप्पणी में पढ़कर मैं सोचता रहा कि हालांकि तूने शायद ही कभी कोई कहानी पढ़ी हो, मगर तुझे कैसे पता लगा कि मेरी कहानी ज़बर्दस्ती है। उस कहानी में मेरी खुद की कोई श्रद्दा नहीं थी और जैसाकि मैनें कहा भी कि मैं वह कहानी लिखने बैठा ही नहीं था मैं तो कुछ और लिखना चाहता था। तो कुल मिलाकर तू एक नज़र में ताड़ सका कि वहां क्या हो रहा था।
दूसरी बात कि तू लेखन को गंभीरता से ले यह बात मैं तुझे कई साल पहले कई बार कह चुका हूँ। इस बात में संशय है कि मेरी बात को ही तू कितनी गंभीरता से लेता होगा। यह पोस्ट पढ़ने के बाद यह बात फिर से याद आई तो सोचा सारी बातें यही एक साथ कह देता हूँ। जगलिंग ही सही मगर इस तरह की बातें थोड़ा फ़्रिक्वेंसी बढ़ाकर लिखे तो शायद अच्छा ही हो।
बॉसत्व में बास ही मुख्य तत्व है, बास होगी तो बॉस होगा। कुछ तत्व ओस का भी हो सकता है। महेन का सुझाव है कि तू लिख। पर लिखे को पढ़ने वाले तो बहुत कम हैं। इसलिए तू निस्संकोच बक। बकेगा तो सब सुनेंगे ही।
बॉसत्व में बास ही मुख्य तत्व है, बास होगी तो बॉस होगा। कुछ तत्व ओस का भी हो सकता है। महेन का सुझाव है कि तू लिख। पर लिखे को पढ़ने वाले तो बहुत कम हैं। इसलिए तू निस्संकोच बक। बकेगा तो सब सुनेंगे ही।
कई बार पढ़ा, असहमति का सवाल ही नहीं है। लेकिन कई बातें सोच रहा हूं पर सिद्धांत रूप से कुछ कह पाना मुमकिन नहीं है। मैं किस श्रेणी में हूं, आप जानते ही हैं। अगर यह कोई ग्लेमर नहीं है तो अपन छोटे-मोटे जिलों में कथित बॉस रहते हुए भी केंद्रीय दफ्तर के बॉस की मातहती करते हुए भी बौडम ही थे। वैसे सद्भावना दिखाते रहना भी आसान काम नहीं है।
लेकिन जो इस पोस्ट का मूल भाव है सौ फीसदी सच है। मूर्खों जो धूर्त भी हों के लिए रास्ता हमेशा सुगम है और जो ऐसे नहीं हैं, उनके लिए खुद को घिसते रहना...
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