हर रोज़ ऐसे कुछ लम्हे आते थे.... जब हम साइडलाइन्ड महसूस करते..... या गधों की तरह काम करते हुए देखते कि काम न करने वाले बॉस के आस-पास चहक रहे हैं जबकि यहां मूतने की फ़ुर्सत नहीं है.....
ऐसे ही एक लम्हे में उसने पूछा कि क्या यार..... हम ऐसे ही रह जाएंगे.... क्या हमारी ही तरक्की नहीं होगी.... बाकी चूतियों को देखो- कहां के कहां पहुंच गए. बोलो- क्या हमारी हालत कभी सुधरेगी भी.
रोज़ के विपरीत आज मैंने गाली नहीं दी.... रोज़ के विपरीत मैंने उसे सांत्वना नहीं दी.... रोज़ के विपरीत मैं आज मैं बोला- ऐसे कि जैसे मुझे बोधिसत्व प्राप्त हो गया है....
हां शायद हम ऐसे ही रह जाएंगे हमेशा..... जैसा कि मधुमक्खियों की दुनिया में होता है- मज़दूर मक्खी मज़दूरी ही करती है.
मतलब, उसने पूछा
देखो भाई- मधुमक्खियों का छत्ता एक पूरी दुनिया होता है. इसमें सिर्फ़ खाने वाले भी होते हैं और सिर्फ़ काम करने वाले भी. इसमें घर भी होते हैं. स्टोर रूम भी. राजमहल भी और मज़दूरों के घर भी. तो ज़रूर इसमें मीडिया हाउस भी होते होंगे-- अख़बार और टीवी भी होते होंगे. उनमें चैनल हेड होते होंगे और पैकेज प्रोड्यूसर होते होंगे. पत्रकारों को डंप करने के लिए इंजस्ट और व्हील जैसे तहखाने भी होते होंगे। लेकिन हमारी दुनिया की तरह उनमें कुछ नहीं होता होगा तो वो होगा असंतोष.
ये इसलिए कि मधुमक्खियों की दुनिया में चीज़ें साफ़ हैं. रानी मक्खी का काम है- प्रजनन करना और सेवा करवाना. तो मज़दूर मक्खी का काम है सेवा करना. इसमें सब तरह की सेवा शामिल है। नर मक्खी रानी के साथ मिलन करती है और मर जाती है-बिना किसी शिकायत के। यानि कि जिसके हिस्से जो काम आता है वो वही करता है. किसी को असंतोष नहीं, शिकायत नहीं।
तो मेरे दोस्त अगर आपको अपनी भूमिका पता हो तो कोई दिक्कत नहीं होगी. अगर आप पिछले पांच, दस, पंद्रह साल से मज़दूरी कर रहे हैं तो ज़रूर मज़दूर मक्खी ही होंगे। अपनी भूमिका ईमानदारी से निबाह लें वही बहुत है। जो रिपोर्टर मक्खी होते हैं वो इंजस्ट से भी रिपोर्टिंग में चले जाते हैं. प्रोड्यूसर मक्खी कुछ भी करके प्रोड्यूसरत्व को प्राप्त हो ही जाते हैं. और मज़दूर मक्खी को अगर प्रोड्यूसर बना भी दिया जाए तो वो वहां भी मज़दूरी ही करता है. इसी तरह प्रोड्यूसर मक्खी पैकेजिंग में भी प्रोड्यूसरी करती दिखेगी। अर्थात मज़दूर मक्खी कई साल के अनुभव और न्यूज़ सेंस के बाद भी पैकेज प्रोड्यूसर ही बनी रहेगी.
कुछ ऐसी मक्खियां भी हैं जो सिर्फ़ भिनभिना कर अपनी अहमियत बनाए रख सकती हैं. ये रानी मक्खी के आगे भिनभिनाती हैं फिर मज़दूर मक्खियों के आगे भिनभिनाती हैं और इतना भिनभिनाती हैं कि रानी और मज़दूर को एक-दूसरे की बात सुनाई नहीं देती. फिर ये दोनों को अलग-अलग कहानियां सुनाकर अपनी जगह बनाती और पक्की करती रहती हैं.....
ऐसी मक्खियां अपने आस-पास तो बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं.... मधुमक्खियों की दुनिया में होती हैं या नहीं, इसका अभी पता नहीं.
तो बात साफ़ है कि अगर आपको अपनी स्थिति और भूमिका का पता हो तो फिर ऐसे सवाल बेमानी हो जाते हैं कि क्या हमारी स्थिति हमेशा ऐसी ही रहेगी. एक मज़दूर मक्खी जैसी.
(सहारा के दिनों में लिखी थी.... अब भी अपनी ही बात सही लगती है)
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3 comments:
सहमत हे जी आप से
अगर आपको अपनी स्थिति और भूमिका का पता हो तो फिर ऐसे सवाल बेमानी हो जाते हैं
-बिल्कुल सही कहा...
ापना तो असहमत होने का सवाल ही नही उठता। बहुत बडिया। शुभकामनायें
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