Saturday, October 23, 2010

आधुनिक नचिकेता

प्रतियोगिता दिनोंदिन बढ़ रही थी और इसी के चलते अपने अख़बार का प्रसार बढ़ाने के लिए यमराज के दौरे भी। ऐसे ही एक दौरे से लौटने के बाद उन्हें पता चला कि एक युवक पिछले तीन दिन से उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। बायो-डाटा देखते ही यम ने उसे बुलवा भेजा। ये देखकर कि शहर के सबसे सस्ते ढाबे और सबसे सस्ते होटल ने तीन दिन में ही उसकी हालत ख़स्ता कर दी है वह बेहद प्रसन्न हुए। प्रथम श्रेणी के छात्र और बेहद संभावनापूर्ण लेखक की मजबूरी को ताड़ते ही उनके मुंह में पानी आ गया। मुख पर गंभीरता ओढ़ इस पर बेहद दुख व्यक्त किया कि उसे तीन दिन इंतज़ार करना पड़ा। सख़्त ज़रूरत होते हुए भी कहा कि नौकरियों का बेहद टोटा है। उसकी निराशा और मजबूरी को बढ़ता देख आखिर यम ने उसकी इच्छा पूरी कर दी... उसे नौकरी दे दी और अपने अख़बार में अनंतकाल के लिए एक और प्रशिक्षु रख लिया।

(सुधीर राघव के लिए पंजाब केसरी (98-99) के दिनों में लिखी गई)

3 comments:

सुधीर राघव said...

भाई सोतड़ू तुम तो तीन दिन के अनुभव में नचिकेता बन गए, में तुम से चार पांच साल पहले १९९४-९५ में आया था और महीनों भटका और शब्द का मजूदर बनकर रह गया। अब तक वही कर रहा हूं।

सुधीर राघव said...

भाई सोतड़ू तुम तो तीन दिन के अनुभव में नचिकेता बन गए, में तुम से चार पांच साल पहले १९९४-९५ में आया था और महीनों भटका और शब्द का मजूदर बनकर रह गया। अब तक वही कर रहा हूं।

पशुपति शर्मा said...

अच्छा लगा ये देखकर कि 'शोले' की तरह समय के थपेड़े के बावजूद वही 'आग' बाकी है।