कल पूरी रात बर्बाद हो गई (पूरी नहीं, बीयर नहीं होती तो पूरी बर्बाद होती)
कल 'द सीज' नाम की फ़िल्म देखी।
डेंज़ल वाशिंगटन और ब्रूस विलिस के चक्कर में ले गया था.... लेकिन अफ़सोस
हिंदी मसाला फ़िल्म की तरह ऊटपटांग। थोड़ी सी और आगे जाती तो मिथुन चक्रवर्ती की फ़िल्म हो जाती। सौ फ़ीसदी टाइम ख़राब
आतंकवाद अमेरिका में बहुत बिकने वाला विषय है। ख़ासतौर पर ९-११ के बाद। ये न सिर्फ़ लोगों की भावनाओं से जुड़ता है बल्कि इसमें एक्शन की भी भरपूर गुंजाइश होती थी। इस विषय पर कुछ अच्छी फ़िल्में भी बनी हैं... उनके नाम फिर कभी। तो इस विषय में पूरी गुंजाइश थी एक अच्छी-एंटरटेनिंग फ़िल्म बनने की। डेंज़ल वाशिंगटन, ब्रूस विलिस के अलावा सहायक रोल में एक्टर (नाम पता नहीं) बहुत अच्छी टीम बनती थी.... लेकिन कहानी का ही अता-पता नहीं। सिर्फ़ सब्जेक्ट से ही तो फ़िल्म नहीं बन जाती भाई।
ये वो वक्त भी नहीं कि लोगों के पास विकल्प नहीं होते थे रामानन्द सागर ने ऐतिहासिक रूप से घटिया प्रोडक्शन कर रामायण के नाम पर ऐतिहासिक कमाई कर डाली.... महाभारत भी बिका- पर उसका प्रोडक्शन अपेक्षाकृत बेहतर था। अब केकता कपूर तमाम मसालों के बावजूद कमाल नहीं कर पा रही....
हालांकि मुझे पता नहीं कि ये फ़िल्म अमेरिका में कितनी चली पर उम्मीद तो कर ही सकता हूं कि सुधी दर्शकों ने नकार दी होगी...
तो अगर मेरे अनुभव से फ़ायदा लेना है कि कृपया इस सीज़ से बचें।
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4 comments:
अच्छा हुआ मैंने फिल्म आधी ही देखी
हे, हॉलीवुड समीक्षक, फिलहाल मैं इस फिल्म के बारे में कुछ नहीं कहूंगा। इस पर अगर तुम्हारी यह राय है, तो मुझे लगता है कि यह फिल्म देखी जा सकती है।
surenduniya ke ekmatra vicharak, Bharat ki sabse badi baudhik hasti maine George Bush ko patr likh diya hai ki apne desh men koi bhi film banane se pehle hamare Sotadu se salah kyon nahi li gayee. I also warned him that aage se aisa kiya to 9/11 se bhi buta haal hoga.
तुम्हारे एक बहुत पुराने पोस्ट को पढने के बाद यह टिपण्णी करने का मन किया. अगर कोई व्यक्ति किसी भी काम से (इसमें फिल्म देखना भी है ) पूरी तरह संतुष्ट हो जाता है तो मुझे लगता है क़ि कुछ गड़बड़ है . यह हो सकता है क़ि तुम्हारे मनपसंद कलाकार कुछ अच्छा कर गए होते तो तुम्हे कुछ संतोष हो गया होता . तब कम से कम तुम्हारी रात बर्बाद नहीं होती . लेकिन वह सचाई सामने नहीं आती जो तुमने होलीवुड सिनेमा के बारे में कर दी है . मैं तो अमेरिकी सिनेमा बहुत कम देखता हूँ . लोग कहते हैं क़ि हालीवुड में अच्छा सिनेमा बनता है . तुम्हारी टिप्पड़ी से मालूम हुआ क़ि वहां भी मसाला (घटिया ) सिनेमा बनता है . इसके साथ ही तुम्हे एक जानकारी देना चाहता हूँ . कहीं पढ़ा है क़ि ऍफ़टीआईआई पुणे की स्नातक बेला नेगी ने एक फिल्म बनाई है दाएं या बाएँ . इसमें दीपक दोबरिआल और भारती भट्ट आदि मुख्य कलाकार हैं . इसकी शूटिंग नैनीताल के आसपास हुई है . फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है .
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