नोएडा में इतालवी कंपनी कंपनी ग्रेजियानो ट्रांसमिशियोनी के सीईओ एल. के. चौधरी की हत्या गुस्साए मज़दूरों ने कर दी.... ये दुर्घटना बेहद हिलाने वाली है। इस पर संक्षेप में दो-तीन बातें कहना चाहता हूं....
मेरी जानकारी में ये हाल के वक्त में ये इस तरह की पहली घटना (दुर्घटना) है। वरना अक्सर गुड़गांव में होंडा कर्मचारियों की पिटाई जैसी ही वारदातें होती रही हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं कि मैं चौधरी साहब की हत्या को जस्टीफ़ाई कर रहा हूं- ये कभी नहीं हो सकता। कोई नहीं, ख़ुद मज़दूर भी नहीं- जो कभी-भी बाहर धकेल दिए जाते हैं- इसका समर्थन कर सकते हैं। फिर ये भी सही है कि इस दुर्घटना से ज़्यादा कॉर्पोरेट जगत से ज़्यादा नुक्सान मज़दूरों का ही होगा।
उद्योग जगत ने इस दुर्घटना की निंदा की है। निवेश पर ख़राब असर पड़ने वाला बताया है। यूपी छोड़ देने की चेतावनी दी है। ये भी कहा जा रहा है कि ज़्यादातर कंपनियां ऐसी समस्याओं से जूझ रही हैं। संभव है कि ये सही हो और जैसे-जैसे अमेरिका से मंदी हमारी नौकरियों तक आएगी, ये दिक़्क़तें बढ़ेंगी ही- मज़दूर-मैनेजमेंट दोनों के लिए।
ऐसे में श्रम मंत्री का बयान आश्चर्यजनक और राहत भरा है। ऑस्कर फ़र्नांडीज़ ने इस दुर्घटना को मैनेजमेंट के लिए चेतावनी बताया है। पर सवाल ये है कि सरकार ऐसा कब तक होने देगी।
दिक्कत ये है कि जब तक काम की शर्तें साफ़ नहीं होंगी, खुला मोल-तोल चलने दिया जाएगा तब तक लाठी के ज़ोर पर चीज़ें तय करने की कोशिश भी रहेगी। ठेकेदार होंगे- लठैत होंगे, विद्रोही पनपेंगे। अब या तो आप वर्ग संघर्ष के ज़रिये क्रांति का इंतज़ार करें या ज़िम्मेदार राज्य के नाते शर्तें साफ़ करें- जिसमें वंचितों का ख़्याल रखा जाए।
असंगठित क्षेत्र के मजदूरों से संबंधित विधेयक को इसी मानसून सत्र में पेश किया जाना है। दरअसल ये पेश हो जाना चाहिए था, लेकिन विश्वास मत के चलते मानसून सत्र जुलाई-अगस्त के बजाय अक्टूबर नवंबर में पहुंच गया। इस विधेयक से माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी राज्य सरकारें राज्यों के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा देने के लिए योजनाएं तैयार करें। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि जो योजनाएं तैयार की जाएं उन्हें ठीक तरीके से लागू किया जाए। इन मजदूरों के लिए पृथक श्रमिक बोर्ड के गठन का भी प्रस्ताव है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए केंद्र के स्तर पर भी एक बोर्ड का गठन होगा जो पूरे देश में इस दिशा में उठाए जा रहे कदमों की समीक्षा करेगा। ये काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था लेकिन महिला आरक्षण की तर्ज पर कुछ विधेयकों के लिए कभी देर नहीं होती। देर लगती है तो सांसदों, विधायकों के भत्ते बढ़ाने में।
असंगठित क्षेत्र में देश के 93 (अब 94) फ़ीसदी श्रमिक हैं। चूंकि ये असंगठित हैं इसलिए इनकी कोई सामूहिक ताकत नहीं। इसलिए जितना शोर छठे वेतन आयोग को लेकर होता है उसका शतांश भी असंगठित क्षेत्र के लिए प्रस्तावित विधेयक पर नहीं उठता।
इस मसले पर इंटरनेट पर ख़बरें देख रहा था तो एक उल्लेखनीय तथ्य ये मिला कि अमेरिका में सर्वाधिक कमाऊ युवा सीईओ में दो भारतीय (मूल के) भी हैं। प्रसिद्ध बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स द्वारा तैयार इस सूची में प्रकाशन क्षेत्र की माहिर साफ्टवेयर कंपनी एडोब के शांतनु नारायणन को 5 वां तथा बीपीओ दिग्गज काग्नीजेंट के फ्रांसिस्को डिसूजा को 15वां स्थान मिला है।
एक तथ्य ये भी है कि टॉप मैनेजमेंट और कर्मचारी के बीच में फ़र्क बढ़ रहा है.... एक कल्पना है डेमोलिशन मैन नाम की फ़िल्म में। इसमें भविष्य की दुनिया की तस्वीर है.... बहुत साफ़-सुथरी, लोग होने वाले अपराधों के नाम तक भूल गए हैं। खाने के नाम पर भरी हुई थालियां नहीं बस मुट्ठी भर चीज़ें हैं- जिनमें शरीर के लिए ज़रूरी सब चीज़ें हैं। सेक्स के लिए ये लोग शारीरिक संपर्क नहीं करते बल्कि दिमाग से ही उसकी अनुभूति कर संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन उसी वक्त में ज़मीन के नीचे एक और दुनिया है। ये लोग हमारे (तीसरी दुनिया के) ही ढंग से जीते हैं। गरीब और गंदगी से भरे हुए। ये लोग कभी-कभी अंडरग्राउंड दुनिया से बाहर आकर खाने की चीज़ों के लिए साफ़-सुथरे लोगों पर हमला करते हैं।
कभी-कभी मुझे डर लगता है कि क्या ये डरावनी कल्पना सही होने जा रही है
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2 comments:
mitr, govinda ki ek film me johney liver se jab poocha jaata tha ki vo kiski taraf hai, to vo apna mooh poochne waale ki taraf aur unglee ka ishara us taraf karta tha jidhar wo vaastav me hota tha. matlab ye ki aapke hamdardee to mazdooron ki taraf dikhayee padtee hain par apkee asli chinta zameen phadkar bahar na aa jaaye yaa krantee na ho, hee dikhayee padtee hai. doosre sarkaar ke kanoon aur tamam upaay kitne prabhaavi hue hain ye aap bhi jante honge. Asal me dost kranti na aapke na chahne se hogi na mere chahne se. kranti tab hoti hai jab paida karne waala bhookha rehta hai. poonjivaad logon ko bhookha karega uski prakriti hai, sarkaar varg-sangarsh rokne ke liye tamam karegee lekin hoga wahi jo vartmaan samajik vyavastha logon ko degee. isliye kranti se darna chodiye. behtar hoga ki muktivodh ke shabdon me apni politics abhi tay kar li jaye, kahin kal janjwar hame aisa karna ka moka na de to kya hoga?
इस हत्या पर मार्सवादी होने का दावा करने वाले जरूर खुश हो सकते हैं कि चलो जिस वर्ग संघर्ष की बात कही गई थी, वो शुरू तो हुआ। बाबा की बात सही निकली। वर्ना ये कैंजे और उसके बाद आए पूंजीवादी लगातार उन्हें गलत साबित करने पर उतारू थे। पर मैं यह दावे से कह सकता हूं कि मार्क्स इस हत्या से खुश नहीं होते। मार्क्स का सिद्धांत समाज विग्यान का इतना साइंटफिक अध्ययन उसे ऐसी हत्याएं सबित करती हैं और न ही कोई पूंजीवाद झुठला सकता है। उनकी अवधारणा ने उस समय यूरोप के पूंजीवादियों को जो आइना दिखाया उसका ही असर है कि आज श्रमिक भलाई की बात होती है। मजदूरों के लिए घंटे और अन्य सुविधाओं की बात चली। श्रम और पूंजी के रिश्ते के बीच जो थोड़ी सी मानवता दिखती है, वह इस समाज को मार्क्स की ही देन है। मार्क्स ने उस समय बाजार के कारकों की व्याख्या की थी, और उनका समाजवाद बाजार से हो कर ही आ रहा है। बाजार की सुविधाएं ज्यादा से ज्यादा तक पहुंचें और बाजार का भी अंतिम लक्ष्य इन्हें हर आदमी तक बेचना है। लालझंडा लेकर चलने वाले तो सोवियत संघ के पतन के साथ ही करीब-करीब दिशाहीन हो गए।
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