Thursday, September 25, 2008

तस्वीर वही, नज़र अलग



ये तस्वीर बाढ़ पीड़ित उड़ीसा की है। उड़ीसा में भी बाढ़ आई है और इससे करीब 40 लाख लोग प्रभावित हुए हैं... करीब एक लाख लोगों तक अभी तक सहायता नहीं पहुंच पाई है, अब तक 50 लोगों की मौत हो गई है, 24 अरब रुपये का नुक्सान हुआ है।
लेकिन उड़ीसा की बाढ़ उस तरह ख़बर नहीं बन रही जैसे कि बिहार की।
क्या ये इसलिए कि बिहार की बाढ़ अप्रत्याशित थी, नई जगह आई थी और उड़ीसा का बाढ़ रुटीन है।
क्या ये इसलिए कि उड़ीसा की बाढ़ प्राकृतिक है और बिहार की बाढ़ आदमी की ग़लतियों का नतीजा है।
या ये इसलिए है कि मीडिया में उड़िया कम हैं, बिहारी ज़्यादा। हिंदी ब्लॉगिंग में भी।

3 comments:

सुधीर राघव said...

सही कहते हो भाई। जब ओलंपिक के दौरान बिजेंद्र की कुश्ती से पहले रवीश कुमार एनडीटीवी की कवरेज के लिए भिवानी पहुंचे। वहां भी हरियाणा की तुलना बिहार से करने की कोशिश कर रहे थे। आप एक राष्ट्रीय चैनल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे हो तो इसका क्या मतलब रह जाता है कि आप यह बाइट्स दें कि हरियाणा में लोग ऐसा करते हैं और बिहार में ऐसा करना बुरा माना जाता है, अगर आप इसी तुलना पर खबर बनाना चाहते हो तो फिर यह भी बताओ कि तामिलनाडु में क्या करते हैं, महाराष्ट्र में क्या करते हैं, उड़ीसा में क्या करते हैं, आंध्रा में क्या करते हैं। हर चीज को बिहार से लेजाकर जोड़ना कहां कि उपमा है। यह काम तो राजठाकरे करता है।

वर्षा said...

हम मान लेते हैं कि उड़ीसा में तो ऐसा होता ही है। अब लखनऊ या सिद्धार्थनगर में एक बच्चा बस से कुचल कर मर जाए तो कोई ख़बर नहीं बनती, दिल्ली में ऐसा हो तो चीख-पुकार मच जाती है।

सोतड़ू said...

एक मूलभूत सिद्धांत है कि सबसे कीमती चीज़ केंद्र में रहती है और उसी को सबसे सुरक्षित रखा जाता है। इसका मतलब ये नहीं कि बाहरी घेरे में होने वाले नुक्सान की कोई कीमत नहीं लेकिन अगर केंद्र को नुक्सान पहुंचता है तो वो सबसे बड़ा है। संसद पर हमला इसीलिए बड़ा है, दिल्ली में- मुंबई में सीरियल विस्फ़ोट इसीलिए भयानक हैं क्योंकि ये आपके मजबूत घेरे को भेदते हैं। ये भाव पैदा करते हैं जब यहां कोई सुरक्षित नहीं तो बाकी कहां होंगे.... चीखो पुकार इसीलिए होती है।