Thursday, September 25, 2008

तस्वीर वही, नज़र अलग

ये प्रचंड हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल यानि कि प्रचंड। प्रचंड नेपाली माओवादियों के नेता हैं और उन्हें शायद इस बात का मलाल होगा कि वो क्रांति करते-करते भी लोकतांत्रिक तरीक से ही सत्ता परिवर्तन कर सके। लेकिन सत्ता बहुत कुछ सिखाती है... और इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण ये तस्वीर है। सशस्त्र क्रांति के ये नेता सिर झुकाए जानते हैं न कहां खड़े हैं.... राजघाट पर।
जी हां अहिंसा के पुजारी को सशस्त्र क्रांति के सेनापति का नमन।
है न ख़ूबसूरत

{तस्वीर- साभार बीबीसी}

2 comments:

Ek ziddi dhun said...

`Bhagat singh jab badh rahe the fansee ke fande kee or, ahinsa hi taha unka sarokaar`

सोतड़ू said...

सैनी साब,
जो आदमी लाल झंडा उठाएगा वो भगत सिंह हो जाएगा क्या? महान बनने का इससे आसान नुस्खा तो अमेरिकन कंपनियां भी नहीं बेच रहीं। जब प्रचंड ने अपनी पार्टी के खिलाफ़ लिखने वाले अख़बारों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी (उसके बाद 12 अख़बारों ने अपना प्रकाशन अनिश्चितकाल के बंद कर दिया था), जब उसने चुनाव से ठीक पहले कहा था कि हम नहीं जीते तो ये चुनाव मानेंगे ही नहीं- तब भी वो भगत सिंह जैसा बर्ताव कर रहा था। सैणी साब तुम तो मत बोलो, अल्ट्राज़ को बोलने दो। वही भगत सिंह को खींचकर प्रचंड के स्तर तक लाएं, तुम न करो।