Friday, October 17, 2008

ब्लॉग चर्चा

कई चीज़ें दिमाग में घुमड़ रही थीं, एक-एक करके डालूंगा। पहली चीज़ तो ये है कि ब्लॉगिंग में मेरा पहला परिचित महेंद्र महता आज मुझे नारी नाम के कम्यूनिटी ब्लॉग पर भी दिखा। तो सोचा सबसे पहले ब्लॉगिंग पर ही लिख डालूं।
मेरे लिए ब्लॉगिंग दोस्तों के साथ गप मारने की जगह है। जैसे एक गोल टेबल के चारों ओर दोस्त बैठे हों... हालांकि ये टेबल घर में नहीं है, ये एक बार में या एक कॉफ़ी हाउस में है। ऐसी जगह में कुछ भी पूरी तरह टेबल के गिर्द बैठे लोगों के बीच ही नहीं रह सकता.... ये निजी के साथ सार्वजनिक भी हो जाता है।
लेकिन तुलसी के लिए ये एक मंच की तरह है। वो इस पर खड़ा होकर भाषण दे रहा है, कविता सुना रहा है, लोगों को बहस के लिए पुकार रहा है। हालांकि बहुत बदतमीज़ ब्लॉगर जगत के लोग उसकी बात ही नहीं सुन रहे। लेकिन फिर भी अपना ये भाई अडिग है- लगातार बोले जा रहा है। जल्द ही ये रिकॉर्ड बना डालेगा ज़ीरो टिप्पणी वाली सबसे ज़्यादा पोस्ट के लिए... हंसना मत कोई सा, उसके ब्लॉग पर क्लिक्स की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। एक दिन कमेंट्स भी बढ़ेंगे- आमीन।
महेंद्र महता उर्फ़ महेन उर्फ़ दही इसके विपरीत स्थिति में है.... पहले भी मैं कह चुका हूं एकाधिक बार कि ब्लॉगिंग से पहले मैं उससे कभी प्रभावित नहीं रहा.... हां मुझे वो एक भला आदमी हमेशा लगता रहा... दरअसल मेरे जैसे बकलोल और ऊंची आवाज़ में बोलने वाले लोगों के सामने धीरे से बोलने वाले लोग शायद जल्दी न पहचाने जाते हों। ब्लॉगिंग ने इसे बहुत झकास मौका दिया.... मेरे अलावा (यकीनन) और भी कई लोगों ने माना होगा कि ये शानदार लिक्खाड़ है। ब्लॉगिंग में उसके ज़्यादातर जानकार यहीं मिले लोग हैं- नए दोस्त और यही ब्लॉगिंग की सफ़लता भी है।
महेंद्र कुछ भी लिख डालता है, 4-4 ब्लॉग चला रहा है (टाइम कहां से लाता है) तो देवेंद्र बाबू को समझ ही नहीं आता कि क्या लिखें। हालांकि वो रोज़ तीन अख़बारों में से ऐसी ख़बरें निकाल कर लाता है जो उल्लेखनीय होती हैं- अपनी विशेषज्ञ टिप्पणी के साथ। लेकिन उसे समझ नहीं आता कि क्या लिखूं-अलबत्ता धीरेश के ब्लॉग पर टोकेकर के साथ उसकी बहस उल्लेखनीय रूप से अच्छी थी। तो ये इन्हीं चीज़ों पर क्यों नहीं लिखता....
नीरज पांडे एक ब्लॉग बनाकर बैठा है- आज तक इसने उस पर कुछ नहीं डाला। हैं जी- आशुलिपि में हर साल पुरस्कार जीतने वाला कवि, अख़बारों को आर्टिकल न छापने के लिए कोसने वाला नीरस- ब्लॉग में कुछ नहीं लिख पाता... अजीबोगरीब है.... दरअसल अजीब नहीं गरीब। अज्ञात कारणों से घर पर इंटरनेट नहीं ले पा रहा और आजतक में ब्लॉगिंग-2 खेलने की आज़ादी कहां।
धीरेश सैणी ब्लॉग में भी वैसा ही दिखता है- जैसा वो है। ये बहुत बढ़िया बात है। इसलिए ब्लॉगिंग में उसके चाहने वाले भी वैसे ही हैं- जैसे हरियाणा, मुज़फ्फरनगर, दिल्ली में। बस स्वस्थ रहे- लोगों को गरियाता रहे।
महेंद्र के ब्लॉग का लिंक मुझे सुशील ने भेजा था, मैंने देखा नहीं। वर्षा और धीरेश ब्लॉगिंग पर चर्चा किए करते थे- मैं बाहर रहता था। बहरहाल मैं किसी के ब्लॉग पर टिप्पणी करूं इससे पहले वर्षा की ब्लॉगिंग में अपनी पहचान बन गई थी, जो कायम है....
बहरहाल कुछ लोग लिखना जानते हैं, कुछ पढ़ना, कुछ आते-जाते टिप्पणी करना और कुछ बस देख कर मुस्कुराना/कोने से निकल जाना... कई साल पहले मैंने महसूस किया था कि सबसे हर काम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, न ही दबाव देना चाहिए (हालांकि ये विस्तार पाकर मौका न देने की दिशा में बढ़ सकता है- फिर भी) लोग अपने बच्चों के साथ ऐसा करते हैं और सैणी साब हर उस आदमी के साथ जिसे वो कुछ अच्छा समझते हैं।
मैं तो काफ़ी बोल गया... सोतड़ू हूं तो क्या नींद तो खुलती है न लेकिन अपने अलहदी महाराज हम जैसों के गुरू हैं.... बहुत आगे.... उम्मीद है इस बार कुछ बोलेंगे....

4 comments:

महेन said...

चार ही ब्लोग हैं क्या? मैं आजतक ठीक से गिन नहीं पाया।
अरे तू अपनी डायरी का वो हिस्सा भूल ही गया…

Kavita Vachaknavee said...

खूब लिखते रहें।

ऐसे ही।

Ek ziddi dhun said...

पीठ खुजलाने का इरादा कतई नहीं है और शायद हममें नाइत्तेफाकी भी बड़े ज्यादा है, पर आपके ख़बरों को दिए गए शीर्षक ही याद करने बैठूं तो अभिभूत होता रहूँ. और अब कुछ मजखोरी.. शेर की लाइन पेश है- `आराम बड़ी चीज है मुंह ढककर सोईए`

योगेन्द्र मौदगिल said...

ठीकठाक ब्लागरी है आपकी
काहे का रंज़ोग़म
बस यूं ही लगे रहो
और क्या