Thursday, October 9, 2008

नींद क्यों आ जाती है ?

नींद क्यों रात भर नहीं आती- के जवाब में एक हज़ार एक कारण हो सकते हैं... नींद न आने के कारण होने वाली दिक्कतें भी इससे ज़्यादा हो सकती हैं.... लेकिन मैं बात करना चाहता हूं नींद आने पर। यूं भी मैं बहुत सोता हूं। एक बार नीरज पांडे ने कहा था (जब हम एक साथ एक फ्लैट में रहते थे) कि न जाने कैसे मेरा कमरा सोने के लिए परफ़ेक्ट बन जाता है। हालांकि मैने उसे समझाया था कि इसके लिए मैं बहुत यत्न करता हूं पर उसके लिए ये एक मज़ेदार विषय था। तो मैं सोता बहुत हूं- या ग़लत वक्त पर सोता हूं- इसलिए ज़्याता सोता दिखता हूं पर ये तय है कि मुझ आलसी के लिए नींद महत्वपूर्ण है। कल मैं पहली बार एमआरआई रूम में था। जिसने भी एमआरआई करवाया है- वो मशीन की घनघोर आवाज़ से परिचित होगा। बहुत लाउड- कानों में रुई देने के बावजूद आप आधे घंटे तक सुन्न रहते हैं। कमाल की बात ये है कि इसके बावजूद मुझे नींद आ रही थी। यही नहीं श्रीमती जी की भी- जो कि एमआरआई मशीन के अंदर घुसी हुई थी- की आंखें भारी थीं.... आश्चर्य।
दरअसल सोने के लिए मैं बहुत युक्तियां करता हूं- अंधेरा करता हूं- कमरे को साउंडप्रूफ़ (यथासंभव) बनाता हूं (इसीलिए नीरज को मेरा कमरा गुफ़ा सरीखा लगता था- निद्रा गुफा़) लेकिन यहां तो लाइटें भी जली हुई थीं और शोर (मतलब बहुत तेज़ आवाज़) भी थी, फिर भी नींद आ रही थी।
सोचने पर मुझे लगा कि शायद एमआरआई का शोर संगीतमय हो गया था। यानि कि एक ख़ास पैटर्न पर होने वाली आवाज़। अब अगर इसमें कोई बात नहीं है- यानि कि ऐसी भाषा जो आपको समझ नहीं आ रही सिर्फ़ कुछ आवाज़ें जो घूम-घूम कर फिर होने लगती हैं तो आपको नींद आ सकती है। शायद इसीलिए कुछ लोग ट्रैफ़िक के बीच पटरी पर सो पाते हैं (हालांकि मजबूरी और थकान से मैं इनकार नहीं कर रहा)। या फिर फ़िल्म देखते हुए लोगों के सोने का उदाहरण ठीक हो.... या फिर बस-ट्रेन का। अगर बस-ट्रेन सोते हुए नज़दीक से गुज़रे तो नींद टूट जाती है लेकिन इनके अंदर हों तो कुछ देर में नींद आने लगती है.... अभी तक तो यही समझ आ रहा है।
वैसे जिन लोगों को एमआरआई का अनुभव प्राप्त नहीं है या जिन्हें इसके बिना मेरी बात समझ नहीं आ रही उनके लिए ये साउंड क्लिप है.... एन्जॉय

6 comments:

सोतड़ू said...

ये तो जादूगरों के सम्मोहन करने वाली आवाज़ लग रही है, जैसी फ़िल्मों में दिखाते हैं।

महेन said...

ये तो जादूगरों के सम्मोहन करने वाली आवाज़ लग रही है, जैसी फ़िल्मों में दिखाते हैं।

Ek ziddi dhun said...

hidayat dee jaati hai ki machine mein hilna naheen hai. ab dikkat ye hai ki itne ajab-gajab shor aur brahmaand kee kisee yatra par nikalne wale kisi yaan mein hone ke se rahsymay ahsaas ke bavjood neend aati hai aur dar lagta hai ki neend jhatke se na khule aur tej hilne ki vajah se MRI dobara na karana pad jaaye.

पलाश said...

मंदबुद्धियों की सुविधा के लिए ये भी बता दें कि एम.आर.आई. क्या बला है

सुधीर राघव said...

मुझे लगता है, जब तुम नींद में थे तब माहेन तुम्हारे ब्लॉग पर तुम्हारे नाम से टिप्पणी डाल रहा था। यह तो हैकिंग है क्या भाई। एमआरआई में सोने के कई और खतरे भी होतें हैं, जिनका जिक्र करते तो अच्छा होता। इस मशीन का रेडियेशन लेवल काफी होता है। इसमें जाकर फिर से सोना सचमुच नुकासनदेह होता है। जीवन में एकाध बार तक ही यह ठीक है।

sarita argarey said...

यथा नाम ,तथा गुण । सोतडू जी आप सोते ही रहें ।ब्लाग जगत के इतिहास में आपका ये योगदान कभी भुलाया ना जा सकेगा ।

http://sareetha.blogspot.com