जब से गांगुली ने इस्तीफ़ा देने की घोषणा की है तभी से कुछ कहना चाहता था। बहुत लोगों को ख़राब लगा है गांगुली के इस तरह रिटायर होने से- मुझे भी लगा है। आंकड़े बताते हैं कि सौरभ गांगुली भारतीय क्रिकेट के इतिहास के सबसे सफल कप्तान रहे हैं। सफल के साथ शानदार भी कहना ज़रूरी है। गांगुली के खेल के बारे में बहुत लोग बहुत कुछ लिख रहे हैं. मैं तारीफ़ करना चाहता हूं गांगुली के जज़्बे की। गांगुली की आक्रामकता ने भारतीय क्रिकेट को नया जोश दिया है। टीम को फ़ाइटर बनाया- जिसका अभाव शायद हमारी टीम की सबसे बड़ी कमज़ोरी रही थी। कप्तान में हिम्मत हो तो बाकी भी भिड़ने को तैयार होते हैं। भज्जी, ज़हीर अगर आज आस्ट्रेलिया के मदमस्त गोरों की आंख में आंख डालकर जवाब दे सकते हैं तो इसका कम-ज़्यादा श्रेय गांगुली को देना ही होगा... गांगुली टीम में वापस किन परिस्थियों में आए हैं ये हम सब जानते हैं और इसके लिए सिर्फ़ उनकी हिम्मत और लगन को ही श्रेय दिया जाना चाहिए। पेप्सी का ये एड गांगुली ने तब किया था जब वो टीम से बाहर थे और क्रिकेट की राजनीति का किला यानि कि बीसीसीआई उनके खिलाफ़ थी... तब शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी कि वो वापसी कर पाएंगे- लेकिन उन्होंने की। और उससे पहले ये ऐड किया- बाकी चीज़ों को छोड़ भी दें तो सिर्फ़ इस ऐड के लिए मैं उन्हें शताब्दी के सबसे बहादुर लोगों में शामिल करना चाहूंगा।
सुधीर से बात के दौरान एक ज़िक्र निकला था उसे भी दर्ज करता चलूं। चैपल और उनके चपट्टों को, और भारतीय क्रिकेट की ठेकेदार बीसीसीआई को गांगुली से दिक्कत ये थी कि वो बोलते क्यों हैं। सही बात है इस देश में सिर्फ़ उसे नहीं बोलना है जिसे इसका हक़ है। बीसीसीआई का चपरासी भी क्रिकेट का विशेषज्ञ की तरह बयान दे सकता है, राजनीति करता रह सकता है लेकिन न बोलें खिलाड़ी और कोच। सचिन तेंडुलकर बोलते नहीं हैं तो क्या कोई भी न बोले। सब सचिन जैसे महान नहीं हो सकते और न ही शांत। लेकिन ये लोग सबको उनके ढांचे में ठोकने पर आमादा हैं क्योंकि वो ढांचा सबको सूट करता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि गांगुली, कपिल, अज़हर को ज़लील कर बाहर कर दिया जाए और ऐसे नालायक बोलते रहें जिन्हें कतई खेल की तमीज नहीं है।
कमाल के कार्टूनिस्ट राजेंद्र धोपड़कर की एक टिप्पणी याद आती है। ये कार्टून शायद 2004 के ओलंपिक के वक्त छपा था। तब भारतीय दल में खिलाड़ियों से ज़्यादा अधिकारी थे--- कार्टून में खिलाड़ी दूर से देख रहा है और बाबू टाइप का एक पोडियम पर खड़ा है। खिलाड़ी कह रहा है-- बड़े बाबू ने कहा कि मेडल वही लेंगे वरना वो मुझे खेलने नहीं देंगे।
भारतीय खेल जगत का ये कड़वा और घिनौना सच है...


6 comments:
सुनील गावस्कर शायद आखिरी खिलाड़ी थे जिन्होंने सम्मान के साथ संन्यास लिया था। बाद के दिनों में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो शायद ही किसी क्रिकेटर को सम्मान के साथ विदा होते हमने देखा हो। कपिल देव रहे हों या अब सौरभ गांगुली दोनों किस तरह के दबाव में रिटायर हुए सभी जानते हैं। किसी खिलाड़ी को कब रिटायर होना चाहिए ये बड़ा मुश्किल सवाल है। सचिन जैसे खिलाड़ी जब खराब खेलने लगते हैं तो तमाम क्रिकेट एक्सपर्ट(टीवी वाले) उन्हें चुका हुआ घोषित कर देते हैं। मुझे लगता है कि रिटायर होने का फैसला खिलाड़ी पर छोड़ देना चाहिए और खिलाड़ियों को भी वक़्त की नजाकत समझनी चाहिए। ताकि क्रिकेट बचा रहे और क्रिकेटरों का सम्मान भी।
मुझे रवि शास्त्री के रिटायरमेंट का वक़्त भी याद है। शारजाह के दौरान एक मैच में वो पूरा तैयार होकर अपनी बारी के लिए बैठे थे,जबकि उन्हें उस मैच में खिलाया ही नहीं जा रहा था और किसी ने उन्हें बताने की जहमत भी नहीं उठायी, साथी खिलाड़ियों ने भी।
वर्षा हो, देवेन्द्र हो और `महामहिम` हों तो बात यूँ हो नहीं पाती. इतिहास तो यही है कि कुछ चीखना, चिल्लाना, कुछ मजखोरी, कुछ ब्लेम गेम और कुछ रूठना और देवेन्द्र की हंसी....गांगुली मेरा प्रिय खिलाडी कभी नहीं रहा मगर जो कुछ जिस ढंग से हुआ, उससे मेरी सिम्पेथी भी उसके साथ है. लेकिन ये मामला कोरी सिम्पथी का वाकई नहीं है (साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पे/अफ़सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते). ये पूँजी के नंगे दौर में उस कथित सलीके वाले इलीट खेल का स्वाभाविक हाल भी है (यूँ, कबड्डी या कुश्ती के चयन में भी कम धींगामस्ती नहीं होती और यह कुछ हमारे `महान` चरित्र का भी मसला hai). गांगुली का जीवट सलाम का हकदार है.
दिक्कत ये है कि हम जज्बात के झोंक में रहने के आदी भी हैं. हम नहीं चाहते कि सचिन को आलोचनातमक नज़र से देखा जाय. वो जीनियस है, मैं भी उसका दीवाना हूँ, मेरे ये रिश्ते किसी धोनी, युवराज या किसी के आने से अचानक बदल नहीं जाते. लेकिन ये तो नहीं कि मैं कहूँ कि अजी ये महान है इसे ताउम्र खेलते रहने देना चाहिए, ya ye दबाव mein nahi आता, अपने रिकॉर्ड के लिए नहीं खेलता, ५० और १०० रन ke पास आने par iski हालत खस्ता नहीं हो जाती. अब उसे ५० मैच और खिलाओ to रिकॉर्ड बढ़ते जायेंगे लेकिन ek bade खिलाडी का मतलब सिर्फ रिकोर्ड का खाता बढ़ते जाना hi nahi होता. ऐसा होता तो गावस्कर, विवि रिचर्ड और पिछले तमाम बड़े खिलाडी अपने रिकोर्ड टूट जाने से छोटे ho जाते. अब दीवाना तो मैं कपिल ka भी रहा aur usne bhi जज्बा diya teem ko par कैसे baad ke dinon mein ek रिकोर्ड ke liye ro-रो kar teem mein घिसता wo. aur usne फिक्सिंग bhi dee. अजहर, हाय कैसी कलाई, कैसी फील्डिंग! पर बेशर्मी ऐसी ki नंगे हो गए तो बोले -मुसलमान पर ज्यादती. भाई गांगुली, अच्छा है निकल लो, ऐसा समर्थन, ऐसा मौका शायद फिर न मिले, एक शतक लगा चुके, एक और लग जाये तो सोने पे सुहागा-गरियाते जाओ सबको, फिर कमीज-वमीज निकालनी ho to निकालो.
चप्प्पल जी को सर पर हमने रखा, गांगुली to डालमिया ke चहेते the aur चप्पल ji bhi aur phir समीकरण bigad gaye..भज्जी, श्रीसंत, युव्वी-फलां ने उसकी आँखों में आँख ड़ाल दी, या फलं को गाली दे दी. ताकत का, पैसे का नशा...इस नशे में श्रीशांत हरभजन से चांटा खा बैठा. वैसे ऐसी नौबत नहीं aa सकती ki भज्जी किसी झोंक में युव्वी को चांटा मार दे. कबीले.....
ganguli ke sath jo bhi ho raha hai galat hai.
२००० से २००८ के बीच जिसने गांगुली को देखा है, वह यह बात मानेगा कि एक शतक के लिए पब्लिक बहुत दिन इंतजार नहीं कर सकती। वैसे जल्दी-जल्दी शतक लगाने की आदत भी इसी तिकड़ी सचिन, सौरव और द्रविड़ ने ही पब्लिक को डाली है। खेलोगे तो हार पर सुनना भी पड़ेगा। किस किस का मुंह पकड़ोगे। मैं तो इतना जानता हूं अगर गांगुली या सचिन खुद खेलना चाहते हैं तो खेलते रहें या जब तक उन्हें चयनकर्ता उन्हें खिलाते हैं, खेलते रहें पर ये उम्मीद न रखें कि बोलने वालों का मुंह बंद हो जाएगा। अगर बात चुभती है, तो बल्ला छोड़ कर कुछ और कामधंधा शुरू कर लें। पर हो सकता है बातें वहां भी सुननी पड़ें। यह तो पब्लिक है, फेल होने पर तो मां-बाप बच्चों को सुना-सुना कर मार डालते हैं।
बहरहाल मुझे लगता है कि जैसे अक्सर हमारे साथ होता है- बात कुछ दूर तक खिंच गई। मैं सिर्फ़ गांगुली की हिम्मत और लड़ाके जज़्बे {fighting spirit} को सामने रखना चाहता था.... पेप्सी का ये एड जिन परिस्थितियों में किया गया उसे आसान कोई नहीं कहेगा- शायद चैपल भी नहीं। और ऐसी घोषणा के बाद अगर गांगुली टीम में वापस नहीं आ पाते तो पूरी ज़िंदगी का किया-धरा इसी में घुस जाता....
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